Friday, November 26, 2010

मोकामा में फिर जीता अपराध

मोकामा में फिर जीता अपराध
पूरा देश भले ही नितीश के काम के कारन बिहार में मिली अप्रत्याशित जीत के लिए  नितीश को बधाई दे रहा हो पर नितीश जी मोकामा को 1 ईमानदार और स्वच्छ छवि का MLA न दे सके उन्होंने मोकामा की अपनी शीट बचाने के लिए फिर अनंत सिंह को टिकट थमाया और वो नितीश के विकाश की अंधी में जीत भी गए ऐसे में जरा मेरी poem "देखो ellection का टाइम आया है भाई" की सार्थकता पर गौर कीजिये ellection के पहले लिखी गयी मेरी ये पोएम पूरी तरह से सार्थक नजर आ रही है ऐसी बात नहीं है कि मोकामा में स्वच्छ छवि के उम्मीदवार नहीं थे श्याम सुन्दर सिंह धीरज को एक अच्छे छवि का लीडर माना जाता है पर अनंत सिंह की लगातार तीसरी बार जीत यहाँ की जनता की मनोदशा को दर्शाता है पर जनता करती भी तो क्या पूरे बिहार में विकाश की लहर थी ऐसे में नितीश की पार्टी को वोट  न करना भी बेमानी होती पर नितीश जी की पार्टी में भी मोकामा के कई अच्छे लोग भी है क्या वो ये शीट नहीं बचा पाते अगर नहीं भी बचा पाते तो तो क्या बिहार की राजनीति में इतिहाश लिखने वाले नितीश कुमार इतने स्वार्थी  है की वो बार  बार यहाँ से एक आपराधिक छवि वाले  व्यक्ति को टिकेट देते रहेंगे मै तो नितीश जी को एक सलाह देना चाहूँगा की वो अपनी पार्टी में केवल अच्छे लोगो को ही रखे इससे उनकी छवि थोरी और बेहतर होगी मै उम्मीद करता हु की अनंत सिंह भी मोकामा के विकाश के लिए उतने ही कार्यरत हो जितने की नितीश बिहार की तरक्की के लिए है

मोकामा की तरक्की का आकांक्षी

विनायक sharma

Wednesday, November 3, 2010

बचपन से ही एक चाहत है मेरी

बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी.
पूरे आस्मा  में भरता रहू मै उर्रान,
छा जाऊ दुनिया पर ,
और सब कर ले मेरी पहचान.
हो जाए मेरी पहचान थोरी अलग ,
जमाने की इस भीर से.
चाहत यही कर रहे हर वखत ,
हम अपनी तकदीर से.
देगी तकदीर मेरा साथ ,
ये खुदा अगर इजाजत हो तेरी.
बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी.
चाहत थी कि कुछ लोगो को ,
रख सकू अपने दिल के पास,
वो भी दे दे साथ मेरा,
ऐसी थी मेरी आस.
पर उन्होंने समझा मुझे 1 खिलौना ,
और मेरा ही दिल तोर चले.
कुछ हुए सहर से begaana ,
to kuch duniyaa ही chhor chale.
in सब से भी to ,
aatma aahat है मेरी.
बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी.
अब मैंने भी यह ठाना है,
जमाने से दूर सपनो का घर बसाना है,
जहा रहू केवल मै और जो मेरे lakchya का ठिकाना है,
पाकर अपना lakchya दुनिया को दिखाना है.
lakchhya को पाना ही तो आदत है मेरी,
बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी

Wednesday, October 27, 2010

देखो ellection का टाइम आया है भाई (for mokama seat)

देखो ellection का टाइम आया है भाई,
हाथ जोरते घूम रहे है वो ,
सर कलम करते थे कभी , और कल तक थे जो कसाई .
देखो ellection का टाइम आया है भाई,
लगभग सारे नेता ही है छलिये ,
चाहे हो किसी पार्टी से या फिर निर्दलिए.
इतने दिनों से सोये थे ,
अब नींद खुली और सोचा जनता के पास चलिए.
आकर हमारे पास माँगा हमारा वोट ,
और साथ जीने मरने की कसमे खाई.
देखो ellection का टाइम आया है भाई,.
देखो ellection का टाइम आया है भाई,.
इसी ellection  में सब वादे कर जाते नकली.
कोई बोलता है सरक बनवायेंगे हम, तो कोई हम देंगे बिजली.
कोई कहता है school खुलेगा यहाँ ,
तो कोई जल आपूर्ति प्राथमिकता होगी पहली .
करते झूठे वादे ये ,
घूम रहे पहने पोशाके उजली.
कहते है आप वोट दे मुझे ,
मै जीतकर करूँगा आपकी अगुआई.
देखो ellection का टाइम आया है भाई,
देखो ellection का टाइम आया है भाई,
हम सब भी खोज लेते है ,
इन बुरो की लिस्ट में कौन सबसे कम बुरा है,
किसके हाथ में है a के 47 ,
और किसके हाथ में सिर्फ छुरा है.
जाकर दे देते है हम अपना वोट.
और जीतता है वही जिसे सबसे ज्यादा वोट परा है.
अगर जित ही गया कोई क्रिमिनल ,
तो फिर हमें शर्म क्यों आई .
आखिर हमने ही तो दिया उसे वोट ,
और कहा करो हमारी अगुआई.
देखो ellection का टाइम आया है भाई,
देखो ellection का टाइम आया है भाई,

कुछ मेरी भी सुनो

दलहन उत्पादन के लिये पूरे देश में प्रसिद्ध यह टाल क्षेत्र मोकामा से पटना जिले के फतुहा तक 110 किलोमीटर लम्बा तथा आठ से 25 किलोमीटर तक चौड़ाई में फैला हुआ है। चने एवं मसूर की खेती के लिये प्रसिद्ध इस टाल झेत्र का रकबा 1.70 लाख हेक्टेयर है। इसे बड़हिया-मोकामा टाल क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।काली केवाल मिट्टी वाले इस क्षेत्र में तिलहन के साथ ही दलहन की अच्छी पैदावार होने के कारण इसे (दाल का कटोरा) के नाम से भी जाना जाता है। टाल के किसानों का दावा है कि यहां सड़क, बिजली और पटवन की समुचित सुविधायें उपलब्ध करा दी जायें तो चना और मसूर के क्षेत्र में वे पूरे भारत को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। टाल विकास योजना को लागू कर इसे दो फसली बनाने का आश्वासन देशके प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी बाजपेयी तक ने अपने-अपने प्रधानमंत्रित्व काल में दिया था परन्तु देश की सर्वोच्च
कुर्सी पर बैठने वाले इन नेताओं के आश्वासन भी कोरे आश्वासन बन कर रह गये।बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल में वर्ष 1952 में तैयार की गई (टाल विकास योजना) को बड़हिया, मोकामा, मोर एवं सिंघौल नामक चार जोन में बांटा गया था,  लेकिन किन्हीं कारणों से यह योजना कार्यान्वित नहीं हो पाई। बाद में केन्द्रीय सिंचाई मंत्री रहे के.एल.राव ने टाल क्षेत्र के विकास के लिये विस्तृत योजना तैयार की लेकिन यह भी ठंडे बस्ते में दब गई। स्व. राजीव गांधी के कार्यकाल में क्षेत्रीय सांसद तथा केन्द्रीय मंत्री श्रीमती कृष्णा साही की पहल पर तत्कालीन केन्द्रीय सिंचाई मंत्री रामनिवास मिर्धा ने इस क्षेत्र का निरीक्षण किया और दबी पड़ी रिपोर्ट को खोला। श्री मिर्धा की रिपोर्ट में हरूहर नदी के पानी को संग्रहण करके जरूरत के मुताबिक इसके वितरण का प्रावधान था परन्तु श्री मिर्धा की यह रिपोर्ट भी धूल फांकने को मजबूर हो गई।  रमेश प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में गठित बिहार विधान परिषद की समिति द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट पर भी कोई कार्रवायी नहीं हुयी। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री रहते हुए स्थानीय सांसद ललित विजय सिंह ने टाल क्षेत्र की समस्या पर लोकसभा में कई सवाल उठाये लेकिन सरकार के कानों पर जूं नही रेंगी। वर्ष 1998 में नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की उपस्थिति में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने मोकामा की चुनावी सभा में टाल विकास योजना को लागू करने का भरोसा दिलाया लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पायलट परियोजना के तहत गंगा बाढ नियंत्रण आयोग ने करोड़ों का ठेका लिया परंतु ट्रैक्टर द्वारा हरूहर एवं किउल नदियों के मिलन स्थल की जुताई कर बालू को तलहटी के किनारे जमा कर दिया और पूरी राशि बंदर बांट हो गई। केन्द्रीय कृषि मंत्री रहे चतुरानन मिश्र ने इस योजना के लिये 54 करोड़ रूपये दिये .जो बाद में सरेंडर हो गये।टाल क्षेत्र वर्षो से जल जमाव की समस्या से ग्रस्त है। मनकट्ठा, बड़हिया और रामपुर डुमरा रेल स्टेशनों के दस किलोमीटर क्षेत्र के कई पुल एवं बड़हिया से फतुहा तक के 90 किलोमीटर सड़क मार्ग में कई पुलियों का निर्माण हुआ। टाल क्षेत्र में आकर समाप्त होने वालीपहाड़ी नदियों धोबा, मोड़हर, सकरी अपर, धनायन महाने, पचाने, जिरामन जोम, फल्गू एवं पुनपुन सहित कई नदियों का पानी जल जमाव की समस्या पैदा करने लगा है। सितम्बर 1977 को बिहार के लोक निर्माण विभाग ने कुल 23 में से 18 सड़क पुलियों को बंद करा दिया जिससे जल-जमाव की समस्या पैदा हुई।वर्ष 1969 और 1970 में 17 स्थानों पर स्लुइस गेट बनाए गये परंतु इन्हें कभी खोला ही नहीं गया। टाल क्षेत्र में जल प्रबंधन के लिये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 12 जनवरी 2007 को बड़हिया के किसानों के साथ बैठक की। अभियंताओं को टाल क्षेत्र जाकर जल प्रबंधन की समस्या से निजात दिलाने एवं फसलों में कीटों के प्रकोप को रोकने के लिये कृषि वैज्ञानिकों को आवश्यक निर्देश दिए गये।  किसानों ने मुख्यमंत्री को दिये ज्ञापन में घोसवरी से बालगूदर ग्राम तक हरूहर नदी की खुदायी कर तटबंधों को उंचा करके पहुंच का निर्माण करने, नदी से जुड़ी तमाम पइनों की खुदाई कर बांध बनाने, पुल-पुलिया एवं स्लुइस गेट बीयर का निर्माण कराने तथा वृक्षारोपणकार्यक्रम चलाये जाने की मांग की थी। टाल की फसलों में कीटों के प्रकोप ने किसानों की रही सही कमर भी तोड़ दी। एक वर्ष दवाओं का हवाई छिड़काव किया गया जो बाद में बंद हो गया।  जल-जमाव के साथ ही टाल क्षेत्र में सूखे की मार भी भारी है। सरकारी नलकूप एवं उदवह सिंचाई परियोजना के बोरिंग भी ठप पड़ी हैं। भगवान भरोसे ही सिंचाई का कार्य होता है। कभी सूखे तो कभी जल-जमाव और फिर कभी कीटों के प्रकोप ने यहां के किसानों की कमर तोड़ दी है। सरकार इन किसानों की समस्याओं पर समुचित ध्यान दे तो इस क्षेत्र के किसान दलहन के क्षेत्र में पूरे देश को आत्मनिर्भर बना सकते हैं लेकिन इसके लिये सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

मेरी कुछ रचनाएँ